आदिवासी और अन्य परंपरागत वन निवासी सदियों से वन में निवास करते आये हैं और अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर रहे हैं। उपनिवेश काल में अंग्रेजों ने अपनी आर्थिक लाभ के लिए वन आश्रित समुदायों को वनों से बेदखल किया और उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया। आरक्षित और संरक्षित वन के बारे में कानून बनाया और आरक्षित वनों से उन्हें पूर्णरूप से बेदखल किया पर संरक्षित वनों को उपयोग करने के लिए कुछ रियायतें दी। आज़ादी के बाद भी सरकारें कानून बनाकर वनों पर लोगों की पहुँच को सीमित करती गयी जिस कारण वन आश्रित समुदाय वनों में अपराधी बन गये और वन विभाग वनों के मालिक बन गये।
अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 अर्थात – वन अधिकार कानून 2006 को प्रस्तुत करते समय केन्द्र सरकार ने उपरोक्त तथ्य को मान लिया और स्वीकार किया कि वन आश्रित समुदायों के साथ ऐतिहासिक अन्याय हुआ है और वन आश्रित समुदाय वन और पर्यावरण का अभिन्न अंग हैं। इस ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और वन आश्रित समुदायों की खास सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके अधिकारों को पुनः स्थापित करने के लिए वन अधिकार कानून बनाया गया है।
 
				 
													 
													 
													 
													 
													 
								 
								